सरकार ने अलग तेलंगाना की मांग क्या मान ली देश के हर कोने से इस तरह की मांगो की बाढ़ सी आ गई है । गोरखालेंड, मिथिलांचल,पूर्वांचल,बुंदलखंड,हरितप्रदेश आदि अलग राज्य होने की मांग बढ़ती ही जा रही है, जिन क्षेत्रों में अलग होने की हसरत दबी हुई थी, तेलंगाना की मांग से उन्हें भी अलग होने की आवाज उठाने का मौका मिल गया है। पर सवाल ये भी है कि वाकई जनता भी अलग राज्य चाहती है या मात्र उन राजनेताओं के हाथ का मोहरा बनी हुई है जो अपना स्वार्थ पूरा करने के लिये इस तरह की मांगो को हवा दे रहे है।
ऐसा लगता है जिस तरह तेलंगाना पर सैद्धातिक सहमति बनते ही दूसरों क्षेत्रों से भी जो अलग राज्यों की मांग का जो दबाव सरकार पर पड़ रहा है इससे सवैंधानिक संकट के आलावा क्या उत्पन्न होगा ये तो भगवान ही जानें, पर बेचारी जनता राजनेताओं और उनके चमचों का खामियाजा हमेशा से भुगतती ही आ रही है।
हो सकता है अब आने वाले वक्त में ये भी सुनने में आये कमला नगर, करोलबाग,सा सन्त नगर या फिर सब्जीमंडी भी अब अलग राज्य बनने वाले है । पर सच में यह गंभीर प्रश्न है की राज्यों के बंटवारे के पीछे इन महानुभवों कारण वाकई विकास की बयार में पिछड़े इलाकों का पिछड़ापन दूर करना इन नेताओं की मंशा है,या वे राजनीतिक सहुलियत हासिल करके सत्ता के शिखर तक पहुंचना चाहते है, और राज्य के नाम पर कभी तेलंगना कभी मिथिला और कभी ...भेड़चाल में क्या क्या चाहते है।
Monday, March 8, 2010
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