Monday, May 24, 2010

आम आदमी क्या चाहता है...

दुनिया में दो तरह के लोग होते है अच्छे या बुरे, बस। इंसानों में बस इतना ही फर्क होता है। कोई हिन्दु,मुसलमान,सिख या ईसाइ नहीं होता। आ॓शो भी कहते हैं मैं धार्मिकता सिखाता हूं धर्म नहीं। हमारा धर्म प्रेम करना है,परमात्मा को पाना हैं। मज़हब के नाम पर खून बहाना नहीं। धर्म एक आस्था है वो किसी के लिए भी हो सकती है।

रास्ते में, एक मासूम बच्चे को
मंदिर के सामने
हाथ उठा
प्रार्थना करते देखा
हाथ ठीक वैसे ही जुड़े थे
जैसे खुदा की इबादत में होते हैं
क्या लोगों ने इसे
समझाया नहीं
भगवान- खुदा अलग है
या यही
मासूमियत प्रेम है
भगवान है...
खुदा है...
जो आज इंसानो
से
जुदा है।

अभी कुछ दिन पहले खबर देखी हवाई यात्रा के दौरान एक लड़की ने बगल में बैठे मुस्लिम यात्री की शिकायत पुलिस को कर दी। उसे शक था कि यह मुसलमान आतंकवादी हो सकता है क्योकीं वह कह रहा था (हवाई जहाज उड़ने वाला है, वह भी उड़ने वाला है) एक तो मुसलमान ऊपर से ऐसी भाषा किस को शक नहीं होता। बस क्या था हड़कंप मच गया फौरन उसे कस्टडी में लिया गया। एक लंबी पूछताछ के बाद,और उसके परिवार वालों की दलीले सुनने के बाद,उसे निदोर्ष पा छोड़ दिया गया।

इससे मिलती-जुलती दूसरी घटना तो मेरे आंखों के सामनें की ही है। मैट्रो स्टेशन पर मेरे बाद सामान की चैकिंग में एक सुन्दर कश्मीरी मुसलमान लड़का फोन पर किसी से आम तौर पर बात कर रहा था, पुलिसवालों ने उसे देखते ही अलग कोने में ले जाकर विशेष तौर पर चैकिंग की। दोनों ही घटनाएं दिलचस्प है। सच कहूं तो उस वक्त मुझे हंसी भी आई।

लेकिन अगर मामले की गंभीरता को देखा जाए तो आम लोगों के दिल की स्थिती क्या हो चुकी है। हमारे मन में दहशत इस कदर घर चुकी है किसी का पहनावा,भाषा हमें इतना डरा सकता है कि किसी मुसलमान को देख हमें उसमें आंतकवादी नज़र आने लगे। क्यों ना हो आए दिन मिलने वाली खबरें, आतंकियों की नज़रे बाजार पर, आतंकवादी मेट्रो स्टेशन पर हमला कर सकते हैं, आंतकवादी बच्चों के स्कूल भी उड़ा सकते है। अब हम डर चुके हैं, इतनी जाने खोकर।

कौन हैं ये आंतकवादी....क्यों इस कदर मासूमों का खून बहाते है..प्रश्न का उत्तर सब जानते हुए भी खामोश हैं। आंतकवादियों की ट्रनिंग में सिखाया जाता है। जो जितनी ज्यादा जानें लेगा उसे ज़ेहाद के प्रति उतना ईमानदार समझा जाएगा,और जो धर्म का काम करते हुए शहीद हो जाता है उसे जन्नत नसीब होगी। उसके परिवार वालों का हर तरह से ख्याल रखा जाएगा। किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी, पैसा कमाने के लिए कौई जद्दोजहद नहीं।

26/11 का हमला कौन भूल सकता है, हाल ही में उसके आरोपी आतंकवादी कसाब को फांसी देने का फैसला सुनाया गया। फैसले को सुन बस यही ख्याल आया (आज कसाब कल कौन?) ये आतंकवादी तो मात्र कठपुतली है, डोर तो किसी और के हाथ में हैं। गरीब मुसलमानों को ज़ेहाद के नाम पर गलत शिक्षा दे ये वहशी अपने फायदे के लिए एक आम आदमी को दूसरों का खून करने वाली मशीन बना देते हैं। ज़ेहाद,धर्म, पैसों,का हवाला दें ये उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं।

एक आम आदमी क्या चाहता है, दो जून खाना जुटाने की जद्दोजहद वाला आदमी। आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ती में जी- जान से लगा आदमी, चैन की सांस चाहने वाला आदमी कितनी ळड़ाई चाहता है। कितने लोग जे़हाद के पीछे पागल है। सियासत की बीसात पर बाजी खेलने वाले चंद लोग, ना जानें कितने कसाब जैसे लोगों की जिंदगी के साथ खेल जाते हैं और हम जड़ खत्म करने की बजाय बस इस पर चर्चा करते रह जाते हैं।

दहशत के माहौल में इस आम आदमी का दम घुटता है,वो धर्म या जाति के आधार पर कोई लड़ाई नहीं चाहता।... और परिवार गवांने की हिम्मत नहीं है उसमें। कौई तो आये, इसे शांति व सुरक्षा का भरोसा दे...।

1 comment:

  1. आपकी सम्वेदनओं को सलाम, पूजा जी!

    वरना नेताओं के बाद, मीडिया-वालों से भी हमनें सम्वेदनाओं की उम्मीद करना बन्द कर दिया है. अकसर देखा है कि मीडिया तो सम्वेदनाओं का बाज़ार लगा कर बैठा है और उनके बीच मज़े से अपना साबुन-तैल-शैम्पू बेच लेता है.

    कौन है आम आदमी ?
    आर के लक्ष्मंण के कार्टूनो मे से झॉकता
    समाज व्यवस्था और संघर्षो से जूझता
    अनवरत पीड़ा का प्रतीक
    वो बूढा है! - क्या आम आदमी?
    या
    सत्ता पाने
    और सत्ता मे बने रहने का सूत्र
    किसी राजनीतिक पार्टी के चुनावी कैम्पऐन की
    कैच लाइन है - वो आम आदमी
    ........
    ........

    सरकारी योजनाओ का केन्द्र है! -आम आदमी?
    खास लोगों के लिये आम बात है! -आम आदमी?
    अपने ही देश मे ही खो गयी, देश की अवाम है! -आम आदमी?
    भरे पेटो के गुलाबी गालो मे छुपी वो कुटिल मुस्कान है -आम आदमी?

    कभी आम आदमी के ब्लोग पर भी आइयेगा!!
    सादर स्नेह!

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