वैसे सोनिया को मैं अक्सर याद करती हूं, और जब याद आती है तो एक मलाल रह जाता है काश मैनें किसी की ना सुनी होती तो आज वो मेरे पास होती।
सोनिया मेरी बुआ की बेटी। तलाकशुदा बुआ मानसिक तौर पर बीमार थी जिसकी वजह से घर में उन्हें रहने के लिए एक अलग कमरा दे दिया गया था। परिवार की आ॓र से उन्हें हर मदद मिलती थी। जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ बुआ मां बन गई, बेटी हुई, नाम रखा गया सोनिया। सबके जह़न में एक ही सवाल था बच्ची कौन पालेगा, तय हुआ बेटी को किसी जरूरत मंद परिवार को दे दिया जाए। पर मां तो मां होती है। मेरी बुआ ने सोनिया को किसी को भी देने से इंकार कर दिया।
गंदगी के कारण बुआ के कमरे में कोई जाना पसंद नहीं करता था। अब बुआ बच्ची को अपनें सीने से आधे लटकाये गलियों में घूमती नजर आने लगी। सब कुछ होते हुए भी उसे मांग कर खाने की आदत पड़ गई थी। कुछ लोग हंसी भी उड़ाते थे। सोनिया सबके लिए दुखद पर मेरे लिए खुशी की बात थी। खेलने के लिए एक प्यारी सी गुड़िया।
मुझे बच्चों के साथ वक्त बिताना हमेशा से ही अच्छा लगता है। मैनें धीरे-धीरे उसे अपने घर लाना शुरू कर दिया और उसके छोटे मोटे काम भी करने लगी। अपने हाथ से खाना खिलाने,नहलाने,सुलाने तक हर ममत्व का अनुभव किया मैंने। बाजार से उसके लिए नये कपड़े, सैंडिल, खिलौने सब कुछ खरीदे जिसकी उसे जरूरत थी। मैं चाहती थी वो पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो। लेकिन ये मेरी बुआ के साथ रहने पर संभव नहीं था वो अपनी बच्ची की देखभाल नहीं कर सकती थी।
अजीब सा लगता था जब शाम होते ही सोनिया कहती थी मुझे मेरी मां के पास ले चलो। मुझे याद है रिक्शा पर अक्सर वो मेरी गोद में सिर रख सो जाती थी। मैं भी अपने स्नेह से उसे सींचने का प्रयास कर रही थी। घर पहुंचते ही वो अपनी मां से लिपट जाती और उछल-उछल कर मेरी बातें बताती,उसने मेरी बुआ से शिकायत भी की मैं उसे थोड़े छोटे कपड़े पहनाती हूं।
सोनिय मेरी आदत बन गई थी, हम साथ में गुड़ियों से खूब खेलते। लेकिन कॉलेज के साथ सोनिया के ज्यादा वक्त दे पाना अब थोड़ा मुश्किल हो रहा था। एक दिन परीक्षा की वजह से मुझे घर आने में थोड़ी देर हो गई। सोनिया घर के बाहर मेरा इंतजार कर रही थी। लाल रंग का लहंगा पहने हाथ में गुड़िया लिए। मुझे देखते ही वो मुझसे लिपट कर रोने लगी आ॓र गुस्सा करने लगी मैं इतनी देर तक उसे अकेले छोड़ कर क्यूं चली गई। आज भी उसका लिपटना मुझे भावुक कर देता है।
सर्दी का समय था मैनें अपनी मां से कहा क्या हम उसे अपने साथ नहीं रख सकते। मैं उसे पढ़ाना चाहती हूं। मां ने कहा, हम एक बच्ची को उसकी मां से अलग कैसे कर सकते है। मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था...। बस हमेशा यही सोचती काश किसी तरह वो मेरे पास रह जाए।
वक्त बीत रहा था और कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक दिन शाम को मैंने उसे अपनी मां की उंगली पकड़ कर जाते हुए देखा, बहुत खुश नजर आ रही थी सोनिया। बस मैं यही सोच पायी उसको कभी उसकी मां से अलग नहीं करूंगी। पर क्या पता था मैं उसे आखिरी बार देख रही हूं।
सुबह पता चला उसकी मां उसे कहीं ले गई। हमने बहुत ढूढां वो नहीं मिली। किसी ने बताया वो हरिद्वार की बस में बैठ कर कहीं चली गई। हमने हरिद्वार में भी बहुत ढूंढा पर...अब वो जा चुकी थी...शायद हमेशा के लिए। आज भी भीड़ में मेरी आंखे हमेशा कुछ ढूंढती रहती है। काश मैनें उसे जाने ना दिया होता...शायद वो मेरे पास होती।
आज मदर्स डे पर मेरी भगवान से यही कामना है 'मेरी' बच्ची हमेशा खुश व सुरक्षित रहे। इस बात को दस साल बीत गये। आज भी उसके कुछ कपड़े मेरे पास पड़े है, जिसमें उसकी यादों की खुशबू अभी भी तरो ताजा है। लगता है जैसे मानो कल की बात हो। सच कहूं तो ममतत्व का भाव हर स्त्री में होता है। मां सिर्फ एक बच्चा पैदा करने से नहीं बल्कि अपने अंदर छिपे ममतत्व भाव को पहचानने से बनती है। मैंने अनुभव किया है।
Sunday, May 9, 2010
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sundar prastuti.
ReplyDeletebahut achhi lagi post
aabhaar
shubh kamnayen
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की कष्टकारी प्रक्रिया हटा दें !
ReplyDeleteयूँ लगता है मानो शुभेच्छा का भी सार्टिफिकेट माँगा जा रहा हो ।
बहुत ही आसान तरीका :-
ब्लॉग के डेशबोर्ड पर जाएँ >
सेटिंग पर क्लिक करें >
कमेंट्स पर क्लिक करें >
शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स >
यहाँ दो आप्शन होंगे 'यस' और 'नो' बस आप "नो" पर टिक
कर दें >
नीचे जाकर सेव सेटिंग्स कर दें !
मदर्स डे पर आपकी यह पोस्ट बहुत सुन्दर और मार्मिक लगी। मेरी शुभकामनाएं !
ReplyDeleteमां सिर्फ एक बच्चा पैदा करने से नहीं बल्कि अपने अंदर छिपे ममतत्व भाव को पहचानने से बनती है।---- मदर्स डे पर सचमुच मार्मिक प्रस्तुति, अच्छा लगा।
ReplyDeleteसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद। 09953090154
मार्मिक
ReplyDelete"जो इंसानियत को कायम रख एक सुन्दर समाज की कामना करती है"
ReplyDeleteयही सोच बनी रहे
"मां सिर्फ एक बच्चा पैदा करने से नहीं बल्कि अपने अंदर छिपे ममतत्व भाव को पहचानने से बनती है"
- सही और सधा हुआ आलेख - शुभकामनाएं
shandar prayas
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
मां सिर्फ एक बच्चा पैदा करने से नहीं बल्कि अपने अंदर छिपे ममतत्व भाव को पहचानने से बनती है
ReplyDeleteसहमत.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। सार्थक एवं सफल ब्लॉगिंग के लिए शुभकामनाएं...
ReplyDeleteकृपया दूसरे ब्लॉग भी देखें और प्रतिक्रिया दें...
bahut acha lagata hai kahi na kahi isme her ek aurat ki khanii chipi hai
ReplyDeleteaapki bhaavnaaon ne hamaare dil ko chhoo liyaa hai is prastuti par aapkaa aabhaar....aapmem aisi bhaavnaayen kaayam rahe...inhin shubhkaamnaaon ke saath....
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