धन्य होती है वो मां जो स्वंय बेटे का तिलक कर गर्व से कहती है,जाआ॓ देश की सेवा करो। ये जानते हुये भी कि आरती की थाली में रखा दीया कभी भी बुझ सकता है। लाल रंग का विजय तिलक कभी भी खून बन बह सकता है। बेटे की मौत का समाचार कभी भी मां का दिल दहला सकता है। उसके बाद भी कहती है मां.. जाआ॓....
मां के इन नौनिहालों का जो मातृभूमि के लिये मर मिटने को तैयार रहते हैं। हमारी सरकार उनका कितना ध्यान रख पाती है ये तो दंतवाड़ा में हुये नक्सलवाद में साफ दिखाई देता है। हमारे देश के 76 जवान देखते ही देखते मार गिराये जाते है और नक्सलवादी उन शहीदों की लाश पर मुस्कुराते हुये सर उठाये चल देते है। एक बार फिर सरकार के मुहं पर नक्सलवाद का एक करारा थप्पड़....
...और बस जवानों की लाशें और माताओं की दर्द भरी चीखें ..शायद उसके नौनिहाल गहरी नींद से जाग जाये। सरकार की नाकामी और लापरवाही की कहानी दंतवाड़ा नक्सलवाद। हमेशा की तरह जांच कमेटी बिठा औपचारिकता पूरी कर दी जाती है। सरकार ये भूल गई की इन अंदरूनी आंतकवादियों को बंदूको से मारना आसान नहीं। ये हमारे समाज का एक सड़ा हुआ अंग है जिसे हम चाह कर भी काट नहीं पा रहे है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच की खींचातानी और ढुल मुल रवैये ने इसे और पनपने में मदद की है। सरकार ने भी अब स्वीकार कर लिया है कि मात्र बातचीत से भी इनकी दरिंदगी पर काबू नहीं पाया जा सकता है। लेकिन क्या सच में हमारी सरकार लड़ाई के लिये भी तैयार है। एक और नक्सली गुरिल्ला युद्ध में माहिर है जिनके पास आधुनिक हथियारों की कमी नहीं है और दूसरी और हमारे जवान पारंपरिक हथियारों के भरोसे जीतने के लिये संघर्ष करते है। नक्सलियों का खुफिया तंत्र सरकारी तंत्र से कहीं आगे है। मनोबल के नाम पर हमारे जवानों के पास भूख से तड़पना और खुद को जानवरों की भूख में परसने के आलावा कोई चारा नहीं है। कुल मिलाकर हमारे जवान कहीं से भी युद्ध के लिये तैयार नजर नहीं आते। ऐसे में महज दावे करने वाली सरकार को जरूरत है कि सुरक्षा तंत्र को सुधारें, आधुनिक हथियारों की व्यवस्था के साथ- साथ उनकी चिकित्सा संबधी सुविधाओं का ध्यान रखे। ताकि शहीदों का संघर्ष खाली ना जाये और इस स्थिति पर काबू करने के लिये केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा। यही हमारी शहीदों को श्रद्धांजलि होगी...
Wednesday, April 14, 2010
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